वृंदावन से गूँजा सत्य का स्वर: जब अधर्म का धन लाता है घर में अशांति और पीड़ा

वृंदावन, भारत – जहां एक ओर भौतिक सुखों की अंधी दौड़ में इंसान नैतिकता के मूल्यों को ताक पर रख रहा है, वहीं वृंदावन की पावन भूमि से संत प्रेमानंद महाराज ने एक बार फिर समाज को सत्य और धर्म का मार्ग दिखाया है। उनके सीधे और स्पष्ट संदेश ने रिश्वतखोरी जैसी सामाजिक बुराई पर गहरी चोट की है, यह समझाते हुए कि बेईमानी से कमाया गया धन कभी भी सच्ची खुशी नहीं दे सकता, बल्कि परिवार में अशांति और दुख का कारण बनता है। यह संदेश ऐसे समय में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब सरकारी विभागों से लेकर निजी क्षेत्रों तक, भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी होती जा रही हैं।

हाल ही में, एक हृदयविदारक घटना संत प्रेमानंद महाराज के समक्ष प्रस्तुत हुई। एक व्यक्ति ने उनके पास आकर अपनी व्यथा सुनाई। उसने बताया कि उसने ईमानदारी से जीवन जीने और कभी भी रिश्वत न लेने की कसम खाई थी। यह संकल्प उसने अपने परिवार के सुख और समृद्धि के लिए लिया था। हालांकि, जब एक अवसर आया और उसे लगा कि थोड़ी सी बेईमानी से उसे बड़ा लाभ मिल सकता है, तो वह अपने संकल्प से डगमगा गया। उसने रिश्वत ले ली। शुरुआत में उसे लगा कि यह धन उसके जीवन में सुविधाएँ और खुशियाँ लाएगा, लेकिन इसके ठीक विपरीत परिणाम सामने आए। उस दिन के बाद से, उसके घर में लगातार एक के बाद एक समस्याएँ आती जा रही हैं। परिवार में कलह, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ, और आर्थिक अस्थिरता ने उनके जीवन को नरक बना दिया है।

इस घटना को सुनकर, संत प्रेमानंद महाराज ने बिना किसी हिचकिचाहट के, अत्यंत स्पष्ट और दृढ़ शब्दों में कहा कि यह “अधर्म का धन” है। उन्होंने समझाया कि रिश्वत का पैसा, या किसी भी अनुचित तरीके से कमाया गया धन, लेते समय तो बहुत आकर्षक लगता है। यह क्षण भर के लिए झूठी संतुष्टि और तात्कालिक लाभ का भ्रम पैदा करता है। लेकिन, महाराज ने चेतावनी दी कि अंततः यही पैसा परिवार को असहनीय दुख और पीड़ा देगा। यह धन भले ही आपकी तिजोरी भर दे, लेकिन आपके मन और आत्मा को खोखला कर देगा।

महाराज ने अपने प्रवचन में एक शाश्वत सत्य को रेखांकित किया: “वेतन से कम चलेगा, लेकिन सुख से चलेगा।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भले ही आपकी आय कम हो, लेकिन यदि वह ईमानदारी से अर्जित की गई है, तो उसमें एक अलग ही प्रकार का संतोष और शांति होती है। एक व्यक्ति को अपनी चादर देखकर ही पैर फैलाने चाहिए। यदि आप अपनी ईमानदारी की कमाई से बाइक नहीं खरीद सकते, तो कोई बात नहीं, साइकिल से चलिए। साइकिल न केवल आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि यह आपको मानसिक शांति भी प्रदान करती है, जो किसी भी महंगी कार से कहीं अधिक मूल्यवान है।

उन्होंने आगे कहा कि बेईमानी के पैसों से भले ही आप एक महंगी कार खरीद लें, एक बड़ा घर बना लें, या विलासितापूर्ण जीवन शैली अपना लें, लेकिन इस धन में स्थिरता और आशीर्वाद नहीं होता। उन्होंने एक ज्वलंत उदाहरण दिया: “बेईमानी के पैसों से कार तो आ जाएगी, लेकिन एक दिन एक्सीडेंट में सब कुछ चला जाएगा।” यह केवल एक प्रतीकात्मक उदाहरण नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि अधर्म का धन आपदाओं और दुर्भाग्य को आकर्षित करता है। यह धन भले ही भौतिक सुख-सुविधाएँ प्रदान करे, लेकिन यह कभी भी वास्तविक सुरक्षा, प्रेम, और मानसिक शांति नहीं दे सकता।

संत प्रेमानंद महाराज का यह संदेश केवल रिश्वतखोरी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन सभी अनुचित तरीकों से धन कमाने वालों के लिए एक चेतावनी है जो सोचते हैं कि वे धर्म और नैतिकता को दरकिनार करके खुश रह सकते हैं। उनका कहना है कि सच्ची समृद्धि भौतिक संपत्ति में नहीं, बल्कि मन की शांति, परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम, और ईमानदारी से जीवन जीने में निहित है। जब आप ईमानदारी से काम करते हैं, तो आपके परिवार में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। बच्चे अपने माता-पिता को आदर्श मानते हैं और वे भी सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं। इसके विपरीत, बेईमानी से कमाया गया धन बच्चों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है, उन्हें गलत रास्ते पर धकेलता है, और परिवार की नींव को कमजोर करता है।