आगरा की सबसे बड़ी जल संचय संरचना मानसून में भी सूखी, जिम्मेदार एजेंसियों की उदासीनता उजागर

आगरा : फतेहपुर सीकरी विश्वदाय स्मारक समूह का एक अभिन्न अंग और आगरा की सबसे महत्वपूर्ण जल संचय संरचना ‘तेरह मोरी बांध’ इस मानसून सत्र में भी पूरी तरह से सूखा पड़ा है। यह स्थिति तब है जब फतेहपुर सीकरी क्षेत्र के अधिकांश छोटे-बड़े तालाब और पोखर भरपूर बारिश के बावजूद पानी से लबालब हैं। उत्तर प्रदेश की एकमात्र हेरिटेज सूची में दर्ज इस बांध की मौजूदा दयनीय स्थिति का सिविल सोसायटी आगरा ने जायजा लिया है और इसके रखरखाव के लिए प्रशासन व पुरातत्व विभाग से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की है।

क्यों सूखा पड़ा है ‘तेरह मोरी बांध’?

सिविल सोसायटी आगरा के निरीक्षण में सामने आया कि राजस्थान से पानी न आने के बावजूद स्थानीय जल संचय क्षेत्र से भरपूर पानी बांध तक पहुंचा, लेकिन बिना ठहरे ही आगे बहता चला गया। इसकी मुख्य वजह यह है कि तेरह मोरी बांध के मूल ढांचे में लगे 7 गेटों में से कोई भी अब काम नहीं कर रहा है। जानकारी के अनुसार, 1964 तक बांध में तेरह सेलुस गेट थे, जिनमें से बाद में केवल छह ही संचालन योग्य बचे थे, लेकिन अब उनमें से भी कोई फंक्शनल नहीं रहा। नतीजतन, जो भी पानी तेरह मोरी बांध तक पहुंचा, वह बिना रुके सीधे नदी में डिस्चार्ज होता रहा।

बांध का ऐतिहासिक महत्व और वर्तमान स्थिति

अकबर के समय में निर्मित यह बांध राजस्थान की ओर से आने वाले पानी के अलावा, स्थानीय जलग्राहक क्षेत्र से भी भारी मात्रा में पानी प्राप्त करता है। फतेहपुर सीकरी स्मारक के एक ओर और दो ओर पहाड़ी ढलानों से घिरी इस जल संरचना का अपना एक बड़ा जल ग्रहण क्षेत्र (वाटरशेड) है।

हालांकि, राजस्थान ने अपने अजान बांध से उस पानी का प्रवाह रोक रखा है, जो बृजेंद्र सिंह मोरी (राजा बृजेंद्र सिंह बैराज) से निकलकर खारी नदी की शुरुआत करता है। यह एक प्राकृतिक जल वाहक संरचना है जो फतेहपुर सीकरी के पाली पतसाल गांव से होकर बांध तक पहुंचती है। आगरा-भरतपुर रोड से खनुआ गांव को जोड़ने वाली सड़क पर पाली पतसाल गांव में पानी के लिए एक पक्की पुलिया भी बनी हुई है। राजस्थान द्वारा पानी रोके जाने के बावजूद, जब भी बारिश होती है, बृजेंद्र मोरी के निचले बड़े क्षेत्र का पानी इस पुलिया से होकर बांध तक पहुंचता है। इस मानसून सत्र में भी तीन-चार बार पुलिया पर उफान की स्थिति बनी थी।

बांध का रखरखाव उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के तृतीय मंडल सिंचाई कार्य आगरा के अधिशासी अभियंता आगरा नहर के तहत आता है। हालांकि, इसके रखरखाव और मरम्मत के लिए शायद ही कभी शासन से धन मांगा गया हो। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी इसकी एक बड़ी वजह रही है। वर्तमान में, बांध के जलमग्न होने वाले हिस्से में खरीफ की खेती भी करवाई जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप जो थोड़ा-बहुत पानी पहुंचता भी है, उसे हितधारक निकाल देते हैं।

पानी नहीं आता’ – एक अर्धसत्य?

जब भी तेरह मोरी बांध का भराव फिर से शुरू करने की बात आती है, तो ‘राजस्थान से पानी आना बंद हो गया है’ का जुमला अक्सर एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है ताकि मांग को ठंडे बस्ते में डाला जा सके। जबकि सच्चाई कुछ और है।राजस्थान से पाली पतसाल पुलिया (भरतपुर-खनुआ रोड) होकर तेरह मोरी बांध में पानी का आना अभी भी जारी है, हालांकि अब इसमें अजान बांध से मिलने वाला पानी शामिल नहीं होता। जब भी 5 मिमी से अधिक बारिश होती है, पतसाल पुलिया से बड़ी मात्रा में पानी तेरह मोरी बांध में पहुंचता है। बांध का स्थानीय जलग्राहक क्षेत्र लगभग 24 वर्ग किमी का है, जिसमें वर्षा के दौरान समय-समय पर फूटने वाली धाराओं का ‘वाटरशेड’ भी शामिल है। अगर बांध के सेलुस गेटों को फिर से चालू कर दिया जाए, तो तमाम नकारात्मक स्थितियों के बावजूद एक बड़ी जलराशि को नियंत्रित उपयोग के लिए बांध में संचित रखा जा सकता है।

भूजल रिचार्ज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण

तेरह मोरी बांध फतेहपुर सीकरी विकासखंड के गांवों के अलावा, अछनेरा विकासखंड के अधिकांश गांवों के भूजल रिचार्ज के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये सभी गांव ‘अतिदोहित श्रेणी’ में आते हैं। जब तक खारी नदी में पानी की पर्याप्तता रही, जलस्तर और गुणवत्ता उपयुक्त बनी रही। भरतपुर के चिकसाना ड्रेन का पानी अब भी खारी नदी में भरपूर मात्रा में पहुंचता है, हालांकि राजस्थान सरकार ने एक नई बांध संरचना बनाकर इसे भी रोकने की कोशिश की है, लेकिन मैदानी इलाका होने के कारण गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए गेटों से पानी को छोड़ना पड़ता है।

सिविल सोसायटी ऑफ आगरा की मांग

सिविल सोसायटी ऑफ आगरा के सचिव अनिल शर्मा, सदस्य राजीव सक्सेना और असलम सलीमी ने पतसाल, पनचक्की, चिकसाना और श्रृंगारपुर आदि का दौरा कर प्रशासन से यह अपेक्षा की है कि तेरह मोरी बांध की संरचना को दुरुस्त करवाकर उसके गेटों को चालू करने के लिए तृतीय मंडल सिंचाई कार्य आगरा के अधिशासी अभियंता आगरा नहर को निर्देशित किया जाए। चूंकि यह एक हेरिटेज संरचना है, इसलिए यदि आवश्यक हो तो पुरातत्व अधीक्षण से भी अनुमति ले ली जाए।

सोसायटी का मानना है कि राजस्थान से उत्तर प्रदेश के हिस्से का पानी मिलना बंद हो जाने के बाद की मौजूदा स्थितियों को देखते हुए, बांध के लगभग 19 वर्ग किमी के स्थानीय कैचमेंट एरिया को जलवाहिकाओं आदि का निर्माण करके व्यवस्थित किया जाए, जिससे मानसून के उफान का हर एक बूंद बांध तक पहुंचना सुनिश्चित हो सके। साथ ही, पहाड़ियों से फूटने वाली जलधाराओं के वाटरशेड को संचय के लिए अधिक अनुकूल बनाया जाए। इन जलधाराओं का पानी अपने स्वाभाविक ढलानों से बांध तक पहुंचता है। तकनीकी जानकारों के निर्देशन में उपरोक्त दोनों कार्य मनरेगा के तहत भी किए जा सकते हैं।