आगरा। ताज ईस्ट गेट से सिकंदरा तक बन रहे प्रथम कॉरिडोर में सफलता के बाद, उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (UPMRC) ने आगरा मेट्रो के शेष भूमिगत हिस्से को समय पर पूरा करने का काम तेज़ कर दिया है। UPMRC ने अब आरबीएस रैंप से आगरा कॉलेज तक अप लाइन में ट्रैक बिछाने का काम पूरा कर लिया है, जो परियोजना के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

काम में तेज़ी: परियोजना को समय पर पूरा करने पर ज़ोर

प्रथम कॉरिडोर के प्रायोरिटी सेक्शन में मेट्रो परिचालन सफलतापूर्वक शुरू हो चुका है, जिसके बाद अब मनकामेश्वर से आरबीएस कॉलेज तक का काम जोरों पर है। आरबीएस कॉलेज रैंप से आगरा कॉलेज तक लगभग 1.5 किमी ट्रैक स्लैब की कास्टिंग पूरी हो चुकी है। इसके साथ ही, इस खंड में लॉन्ग वेल्डेड रेल भी तैयार हो गई है। अप और डाउन लाइन में ट्रैक का काम पूरा होने के बाद, थर्ड रेल और सिग्नलिंग प्रणालियों का काम शुरू होगा।

इसके अलावा, दूसरे कॉरिडोर (आगरा कैंट से कालिंदी विहार) और प्रथम कॉरिडोर के शेष एलिवेटेड खंड (आईएसबीटी से सिकंदरा) पर भी तेज़ी से काम किया जा रहा है, ताकि आगरावासियों को तय समय पर विश्वस्तरीय मेट्रो सुविधा मिल सके।

जानिए, कैसे बिछाया जाता है भूमिगत मेट्रो ट्रैक

भूमिगत मेट्रो ट्रैक का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। सबसे पहले, स्टेशन का ढाँचा तैयार होने के बाद, टनल बोरिंग मशीन (TBM) लॉन्च की जाती है, जो गोलाकार टनल बनाती है। इस गोलाकार टनल में सीधा ट्रैक नहीं बिछाया जा सकता, इसलिए पहले ट्रैक स्लैब की कास्टिंग करके एक समतल सतह बनाई जाती है।

इस समतल सतह पर बैलास्टलेस ट्रैक बिछाया जाता है। यह ट्रैक पारंपरिक ट्रैक की तुलना में अधिक मज़बूत होता है और इसका रखरखाव भी कम होता है। ट्रैक को मज़बूती देने के लिए हेड हार्डेंड रेल का उपयोग किया जाता है। मेट्रो में ट्रेनों का आवागमन अधिक होता है, जिससे पहियों और पटरी के बीच घर्षण ज़्यादा होता है। हेड हार्डेंड रेल इस घर्षण को झेलने और पटरी को टूटने से बचाती है।

ट्रैक बिछाने के लिए ऑटोमैटिक ट्रैक वेल्डिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाता है, जो पटरियों के छोटे-छोटे हिस्सों को जोड़कर लंबी रेल बनाती है। इसके बाद, इन्हें टनल में बिछाकर ट्रैक स्लैब पर स्थापित किया जाता है।