
आगरा। भारतीय ज्ञान परंपरा अमरीका में कल भी चल रही थी, आज भी चल रही है और आगे भी चलती रहेगी। हम कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय संस्कृति और भाषा का परचम विदेशों में लहराता रहे।
‘भारतीय ज्ञान परंपरा : कल, आज और कल’ विषय पर आधारित द्विसाप्ताहिक अंतरविषयी अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला के समापन समारोह में सैराक्यूस यूनिवर्सिटी न्यूयॉर्क से डॉ भानुश्री सिसोदिया ने अंतर्राष्ट्रीय वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि भारत में प्राप्त ज्ञान, परंपरा और जानकारियां मिली हैं, उन्हें वह अमरीका की कक्षाओं में छात्रों को देंगे।
उन्होंने कहा कि जिस देश में हम रह रहे हैं, वहां की संस्कृति को अपनाना भी जरूरी है। साथ ही अपनी संस्कृति को साथ कैसे लेकर चलना है, यह हम भारतीयों का बहुत बड़ा दायित्व है।
कार्यक्रम के आरंभ में कार्यशाला संयोजक एवं केएमआई इंस्टिट्यूट के निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीधर ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए उनका परिचय दिया। कार्यशाला की संरक्षक और डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.आशुरानी ने कहा कि इस कार्यशाला का सुफल हमें तब मिलेगा, जब संचित भारतीय ज्ञान परंपरा का पालन करते हुए और गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन करते हुए छात्र इस परंपरा के संवाहक बनेंगे।
उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के रूप में जो कुछ भी बचा रह गया है, वह अभी तक जीवित है। चाहे वह आयुर्वेद हो या फिर योग या हमारा खानपान। हम परंपरागत तरीके से कार्य करते रहे हैं और उसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करते रहे हैं। भारत के प्रत्येक घर में यह परंपरा आज भी जीवित है। चाहे वह भक्ति में हो, पूजा पद्धति में हो या फिर आचार- व्यवहार के रूप में।
ड्यूक विश्वविद्यालय नॉर्थ कैरोलिना,अमेरिका से डॉ. कुसुम नैपसिक ने अंतरराष्ट्रीय वक्ता के रूप में कहा कि क्योंकि वह भारत से हैं तो अमेरिका के लोगों को अपनी भाषा और संस्कृति को सिखाना वह अपना धर्म समझती हैं। यदि हमें अपने परिवार की अवधारणा को बताना होता है, तो वहां हम रामायण को उदाहरण के रूप में उपयोग में लेते हैं। राम के जीवन का आदर्श देकर हम परिवार के महत्व को समझाते हैं। बहुत सारी बातें प्राचीन और आधुनिक संदर्भों को आपस में जोड़कर भी बतायी जाती हैं। वहां हम जो भी पढ़ाते हैं, उसका प्रामाणिक होना जरूरी है।
लखनऊ से पुलिस उपमहानिरीक्षक ( सीआईडी.) डॉ अखिलेश निगम अखिल ने कहा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता अलौकिक रही है। हमारे ऋषि मुनियों के संदेश बहुत दूर तक गए हैं। आज हमने अपने आप को जानना, पहचाना और महत्व देना बंद कर दिया है। यदि आप अपने आप को महत्व देना बंद कर देंगे, तो निश्चित रूप से समाज आपको नकार देगा। हमने भारतीय भाषाओं संस्कृति और साहित्य को महत्व देना बंद कर दिया है। इसीलिए यह नष्ट हो रही है।
दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के सेवानिवृत्ति सीनियर प्रोफेसर प्रो. पूरनचंद टंडन ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा यह कहती है कि ज्ञान नहीं तो मुक्ति नहीं। ज्ञान विध्वंस के लिए नहीं निर्माण के लिए अर्जित होता है। यह वही देश है, जिसकी योग परंपरा विश्व में परचम लहर रही है। यह देश 8000 वर्ष पुरानी संस्कृति का परिचायक है। हम ऐसे ज्ञान के पक्षधर कभी नहीं रहे, जो हमें मनुष्य ही न रहने दे। हमारी ज्ञान परंपरा में ज्योतिष शास्त्र भी एक विज्ञान है और धर्म की भी वैज्ञानिक व्यवस्था है।
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के कुलपति प्रो. विनय पाठक ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के बारे में हम सभी के विचार चाहे अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन हम सभी एक ऊर्जा के साथ मिलकर भारतीय समाज और सृष्टि के लिए कार्य कर रहे हैं। हम ऋषियों के ऋणी हैं कि हमारे पास एक अक्षुण भारतीय ज्ञान परंपरा है। आज हज़ारों वर्षों के बाद भी सनातन धर्म ज्यों का त्यों विद्यमान है।
कनाडा से वरिष्ठ आध्यात्मिक कवि श्री गोपाल बघेल ‘मधु’, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के आईक्यूएसी के निदेशक प्रो. संजय चौधरी, वृंदावन शोध संस्थान, वृंदावन के निदेशक डॉ.राजीव द्विवेदी ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं एवं अतिथियों के अलावा विद्यापीठ के सभी प्राध्यापकगण भी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ.नितिन सेठी ने किया।