
मुख्यमंत्री योगी से आग्रह: ‘जनकवि नज़ीर’ के नाम पर हो स्टेशन का नामकरण और रचनाएँ दीवारों पर लगाई जाएँ
आगरा: आगरा के जनकवि नज़ीर अकबराबादी के सम्मान में एक महत्वपूर्ण पहल की गई है। शहर की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और युवाओं को उनसे परिचित कराने के उद्देश्य से, नागरिकों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह किया है कि यूपी मेट्रो के ‘ताज मेट्रो स्टेशन’ का नाम बदलकर ‘नज़ीर मेट्रो स्टेशन’ किया जाए। यह मांग 19 सितंबर, 2025 को फतेहाबाद रोड पर आयोजित ‘कारवां ए नज़ीर’ कार्यक्रम के दौरान एक अनुरोध पत्र के माध्यम से रखी गई।
यह आयोजन ‘अमृता विद्या एजुकेशन फॉर अमृता’ फाउंडेशन और इप्टा (इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन) के सहयोग से हुआ। कार्यक्रम का उद्देश्य नज़ीर अकबराबादी की रचनाओं के माध्यम से लोगों को जोड़ना और ब्रज संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ाना था।

‘कारवां ए नज़ीर’: एक आम आदमी के शायर का सम्मान
कार्यक्रम में इप्टा, आगरा की टीम ने दिलीप रघुवंशी के निर्देशन में नज़ीर की दस रचनाओं को संगीतमय अंदाज में प्रस्तुत किया। ‘आदमी नामा’ और ‘कन्हैया का बालपन’ जैसे गीतों को समूह में गाया गया। संगीत निर्देशक परमानंद शर्मा ने दोहे और लावणी लोक शैली में गीत प्रस्तुत किए, जबकि भगवान स्वरूप ने ‘हठयोग’ और ‘सब ठाट पड़ा रह जावेगा’ को पेश किया। असलम खान, सूर्यदेव और जय कुमार ने भी नज़्मों का भावपूर्ण गायन और अभिनय किया। कार्यक्रम का समापन दिलीप रघुवंशी के होली गायन से हुआ।
इस अवसर पर ‘अमृता विद्या’ के सेक्रेटरी अनिल शर्मा ने बताया कि यह आयोजन लोगों को जोड़ने का एक प्रयास है, ताकि ब्रज संस्कृति का विस्तार हो सके। ‘शीरोज हैंग आउट’ के संचालक आशीष शुक्ला ने नज़ीर को समर्पित इस कार्यक्रम में भागीदारी को नागरिकों के बीच सौहार्द बढ़ाने वाला कदम बताया।
मथुरा का ‘रसखान पार्क’ बना प्रेरणानागरिकों ने अपने अनुरोध पत्र में मथुरा के ‘रसखान पार्क’ का उदाहरण भी दिया, जिसे मुख्यमंत्री ने गोकुल में विकसित करवाया है। इस पार्क में एक एम्फीथिएटर और रसखान की मजार है, जो सांस्कृतिक धरोहरों के सम्मान का एक बेहतरीन उदाहरण है। आगरा के प्रबुद्धजन मानते हैं कि इस प्रेरणादायक कार्य की तर्ज पर आगरा में भी नज़ीर के सम्मान में अनुरोध स्वीकार किया जाएगा।
अनिल शर्मा ने यह भी बताया कि ‘कारवां ए नज़ीर’ नज़ीर की स्मृति में ताजगंज क्षेत्र में होने वाला एकमात्र कार्यक्रम है। पहले ‘नज़ीर बसंत मेला’ का आयोजन भी होता था, जिसकी शुरुआत प्रसिद्ध साहित्यकार हनुमंत सिंह रघुवंशी ने की थी और इसे डॉ. जितेंद्र रघुवंशी जैसे प्रबुद्धजनों ने दशकों तक जारी रखा। यह कार्यक्रम सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा रही है।